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ना'त-ओ-मनक़बत
याद-ए-महबूब है और ’आलम-ए-तन्हाई हैअब तो ख़ल्वत में भी क्या अंजुमन-आराई है
हाफ़िज़ मज़हरुद्दीन मज़हर
ग़ज़ल
लल्ला-हिल-हम्द कि जाँ कूचा-ए-दिलदार में हैगो मिरी ना'श पड़ी दामन-ए-कोहसार में है
क़ाज़ी मज़ाहिर इमाम
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ना'त-ओ-मनक़बत
क़स्र-ए-फ़लक से हाथों ऊँचा है बाम-ए-ख़्वाजाअल्लाह जानता है औज-ए-मक़ाम-ए-ख़्वाजा
क़ाज़ी मज़ाहिर इमाम
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मज़रा-ए’-सब्ज़-ए-फ़लक दीदम-ओ-दास-ए-मह-ए-नौयादम अज़ किश्तः-ए-ख़्वेश आमद-ओ-हंगाम-ए-देरौ
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
ऐ कि दर ज़ाहिर मज़ाहिर आश्कारा कर्द:ईसिर्र-ए-पिन्हान-ए-हुवीयत रा हुवैदा कर्द:ई
हुसैन बिन मंसूर हल्लाज
कलाम
सब कुछ है दफ़्न मुझ में वो ज़िंदा मज़ार हूँइस वास्ते मैं अपनी ख़ुदी पर निसार हूँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिलमैं हाल-ए-दिल कहूँ तो अभी मुँह को आए दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
फ़ारसी कलाम
ग़ुलाम-ए-इश्क़म व लुत्फ़-ओ-करम बहा-ए-मन अस्तकसे कि बन्द: ब-ख़्वानद मरा ख़ुदा-ए-मन अस्त
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
तजल्ली गर तिरी पस्त ओ बुलंद उन को न दिखलातीफ़लक यूँ चर्ख़ क्यूँ खाता ज़मीं क्यूँ फ़र्श हो जाती
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शे'र
अगर ये सर्द-मेहरी तुज को आसाइश न सिखलातीतो क्यूँकर आफ़्ताब-ए-हुस्न की गर्मी में नींद आती