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शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
वो कौन सुब्ह सवेरे जहाँ में आया हैकि जिस के आने से ख़िल्क़त का रंग निखरा है