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ग़ज़ल
ख़ारज़ार-ए-’इश्क़ से ऐ शौक़ निकलो तुम कहींगुलशन-ए-हस्ती से हो जाओगे वर्ना गुम कहीं
शाह अमीन अहमद फ़िरदौसी
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
समस्त