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दोहा
'पेमी' तन के नगर में जो मन पहरा देय
'पेमी' तन के नगर में जो मन पहरा देयसोवे सदा अनंद सों चोर न माया होय
बरकतुल्लाह पेमी
दोहा
चुनी चुनी पहरी सुरंग चुनी सौति दल कीन
चुनी चुनी पहरी सुरंग चुनी सौति दल कीनबनी बनी रस सो सरस तना तनी कुच पीन
अब्दुर्रहमान
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कलाम
फिरे ज़माना में चार जानिब निगार-ए-यकता तुम ही को देखाहसीन देखे जमील देखे व-लेक तुम सा तुम ही को देखा
अज्ञात
शे'र
औघट शाह वारसी
दोहा
जमला सहु जग हूँ फिरी बाँध कमर मृग-छाल
जमला सहु जग हूँ फिरी बाँध कमर मृग-छालअजहूँ कंत न मानही अवगुन कोण 'जमाल'
जमाल
पद
आया है क्या ख़याल तेरा तू फिरा फिरे है किस में
आया है क्या ख़याल तेरा तू फिरा फिरे है किस मेंदिल न लगाना हरगिज़ कबहू सोने रूपे मिस में
कवि दिलदार
कलाम
फिरा ज़माना में चार जानिब सनम सरापा तुम्हीं को देखाहसीन देखे जमील देखे पर एक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
पद
काहे को मग़रूर फिरे है अपने दौलत धन से
काहे को मग़रूर फिरे है अपने दौलत धन सेकाहे को रखता है इस को ऐ मतहीन जतन से
कवि दिलदार
गूजरी सूफ़ी काव्य
भेस फिरा कर तू शाह आया
भेस फिरा कर तू शाह आयासो धन लोरी तुझ कल लाया
शाह अली जीव गामधनी
पद
किस के लिए उदास फिरे है किस की ख़ातिर है बे-दिल
किस के लिए उदास फिरे है किस की ख़ातिर है बे-दिलक्यूँ इतना मुज़्तर है प्यारे क्या आई तुझ पर मुश्किल
कवि दिलदार
दोहा
सखी न पाया ठौर ठिकाना पेग फिरा चहु-देस
सखी न पाया ठौर ठिकाना पेग फिरा चहु-देससाजन का घर द्वार नहीं भेजूँ कहाँ सन्देस