आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "par hai ki"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "par hai ki"
सलाम
सलाम उस पर कि जो वज्ह-ए-शफ़ाअ'त बन के आया हैसलाम उस पर जो दो-आ'लम की रहमत बन के आया है
शमीम अंजुम वारसी
रूबाई
मुतलक़ से मुक़य्यद पर है आशिक़ की निगाहवाजिब से ही मुमकिन को मैं समझा बिल्लाह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "par hai ki"
विशेष
कह मुकरनी
अन्य परिणाम "par hai ki"
ग़ज़ल
अल्लाह अल्लाह आईन: वो देख कर फ़रमाते हैंज़ुल्फ़-ए-आरिज़ पर नहीं है मुश्क है काफ़ूर पर
इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
भले-बुरे पर किसी के तुझे नज़र भी हैहुआ न ख़ौफ़-ए-जहाँ कुछ ख़ुदा का डर भी है
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़मीं को आसमाँ पर दा'वा-ए-बाला मकानी हैकि उस पर वो मकान-ए-ला-मकानी का मकीं आया
शाह फ़ज़्ल-ए-रसूल बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
मिरे आक़ा करम की इक नज़र फ़रमाइए सब परकि इक उम्मीद का पैकर 'ग़ज़ाली' आज है बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
पद
देखूँ हूँ अहवाल जहाँ का अजब तरह पर है हैहात
भरा हुआ है जिसके अंदर बूझो तो सारा आफ़ातहै बेहतर तुम छोड़ो उसकी उल्फ़त मारो उस पर लात
कवि दिलदार
ग़ज़ल
जो किसी पर आप न कर सके मुझे उस जफ़ा की तलाश हैरहे जिस से आप भी बे-ख़बर मुझे उस अदा की तलाश है
मयकश अकबराबादी
कलाम
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ परमैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ना'त-ओ-मनक़बत
जो है अंबिया की ज़बान पर वही नाम नाम-ए-रसूल हैयहाँ जिब्रईल भी दंग है कि ये क्या मक़ाम-ए-रसूल है