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साखी
बिरह का अंग - पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जाय
पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जायएक पीर है प्रीति की रही कलेजे छाय
कबीर
साखी
बिरह का अंग - माँस गया पिंजर रहा ताकन लागे काग
माँस गया पिंजर रहा ताकन लागे कागसाहिब अजहुँ न आइया मंद हमारे भाग
कबीर
दोहरा
तन पिंजर दिल खायल कैदी
तन पिंजर दिल खायल कैदी मैनूँ साबत देख न फिरदीबे-परवाही ते ज़ालम फाही मैनूँ रड़के साँग नज़र दी
हाशिम शाह
समस्त