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पद
मुरली बजत अखंड सदाये तहाँ प्रेम झनकारा है
मुरली बजत अखंड सदाये तहाँ प्रेम झनकारा हैप्रेम-हई तजी जब भाई सत्त लोक की हद पुनी आई
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - आया प्रेम कहाँ गया देखा था सब कोय
आया प्रेम कहाँ गया देखा था सब कोयछिन रोवै छिन में हँसै सो तो प्रेम न होय
कबीर
पद
तिंविर साँझ का गहिरा आवै छावै प्रेम मन-तन में
तिंविर साँझ का गहिरा आवै छावै प्रेम मन-तन मेंपच्छिम दिस कि खिड़की खोलो डूबहु प्रेम-गगन में
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाध
ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाधसीस काटि पग तर धरै तब निकट प्रेम का स्वाद
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - जहाँ प्रेम तहँ नेम नहि तहाँ न बुधि ब्यौहार
जहाँ प्रेम तहँ नेम नहि तहाँ न बुधि ब्यौहारप्रेम मगन जब मन भया तब कौन गिनै तिथि बार
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - जा घट प्रेम न संचरै सो घट जानु समान
जा घट प्रेम न संचरै सो घट जानु समानजैसे खाल लोहार की साँस लेत बिन प्रान
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम तो ऐसा कीजिये जैसे चंद-चकोर
प्रेम तो ऐसा कीजिये जैसे चंद चकोरघींच टूटि भुइँ माँ गिरै चितवै वाही ओर
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैराग
प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैरागसतगुरु बिन जावै नहीं मन मनसा का दाग़
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - 'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगाय
'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगायरोम रोम में रमि रहा और अमल बया खाय
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम भाव इक चाहिये भेष अनेक बनाय
प्रेम भाव इक चाहिये भेष अनेक बनायभावे गृह में बास कर भावे बन में जाय
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - सबै रसायन मैं किया प्रेम समान न कोय
सबै रसायन मैं किया प्रेम समान न कोयरति इक तन में संचरै सब तन कंचन होय
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम भक्ति का गेह है ऊँचा बहुत इकन्त
प्रेम भक्ति का गेह है ऊँचा बहुत इकन्तसीस काटी पग तर धरै तब पहुँचै घर संत