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शे'र
क़िस्मत जागे तो हम सोएँ क़िस्मत सोए तो हम जागें
दोनों ही को नींद आए जिसमें कब ऐसी रातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
रूबाई
चूँ रिज़्क़-ए-तु आँ चे अद्ल क़िस्मत फ़र्मूद
यक ज़र्रः न कम शुद व न ख़्वाहद अफ़्ज़ूद
अ’ली इमाम ख़ान
ग़ज़ल
ज़हे क़िस्मत पसंद-ए-ख़ातिर-ए-मुश्किल पसंद आया
अज़ल से छाँट कर लाए थे हम जो दिल पसंद आया
अशफ़ाक़ हुसैन मारहरवी
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ना'त-ओ-मनक़बत
रसूलुल्लाह से निस्बत पे क़िस्मत नाज़ करती है
दर-ए-अक़्दस के सज्दों पर इ'बादत नाज़ करती है
कामिल शत्तारी
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में था
अब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
विसाल-ए-यार जब होगा मिला देगी कभी क़िस्मत
तबीअ'त में तबीअ'त को दिल-ओ-जाँ में दिल-ओ-जाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
जुब्बः-साई जिस से की क़िस्मत चमक उठी 'रियाज़'
हज़रत-ए-'साहिर' के दर से क्यूँ हमारा सर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
कलाम
ये कहाँ थी मेरी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
मेरी तरह काश उन्हें भी मेरा इंतिज़ार होता