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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़मीं तुझ पर नुज़ूल-ए-आसमाँ होने को हैगोया नूर ख़ालिक़-ए-'आलम अ'याँ होने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
मक़ाम-ए-रहमत-ए-हक़ है तिरे दर की ज़मीं वारिसअदा हो जाए मेरा भी कोई सज्दा यहीं वारिस
क़ैसर शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
दो-'आलम जिस का परतव है मुहिब्बो वो ज़मीं ये हैभरा करते थे दम जिस का सुलैमाँ वो नगीं ये है
शाह मुब्तला हुसैन
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़मीं को आसमाँ पर दा'वा-ए-बाला मकानी हैकि उस पर वो मकान-ए-ला-मकानी का मकीं आया
शाह फ़ज़्ल-ए-रसूल बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़मीं वाले ये क्या जाने है क्या रुत्बा मोहम्मद काजब अपने इंतिसाब-ए-'अर्श है जल्वा मोहम्मद का
हसन जान
ना'त-ओ-मनक़बत
नबी-ए-पाक का सदक़ा ज़मीं से आसमाँ तक हैउन्हीं के नाम का रक़्बा ज़मीं से आसमाँ तक है
उवेस रज़ा अम्बर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ऐ तबीबम अज़ सर कि ख़बर ज़े-सर न-दारमब-ख़ुदा रहा कुनम जान कि ज़े-जान ख़बर न-दारम