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ग़ज़ल
दे के ग़म उफ़ मह-जबीं 'इशरत का सामाँ ले चलादिल मिरा ज़ख़्मी किया और दीन-ओ-ईमाँ ले चला
औघट शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मी-ख़्वास्तम कि रोज़ः-गुशाएम नमाज़-ए-शामसर बर ज़द आफ़्ताब-ए-जहाँ-सोज़-ए-मन ज़े-बाम
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
न होगी रज़्म अगर तो बज़्म वज्ह-ए-बरहमी होगीकिसी सूरत से हो दुनिया तो इक दिन ख़त्म ही होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा तुझे हर बज़्म में शामिल समझते हैंकोई महफ़िल हो हम उस को तिरी महफ़िल समझते हैं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ कि तू शम-ए'-फ़रोज़ाँ सूरत-ए-परवान:अमजान-ओ-दिल क़ुर्बां कुनम मन आ'शिक़-ओ-दीवाना-अम