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ग़ज़ल
ख़ारज़ार-ए-’इश्क़ से ऐ शौक़ निकलो तुम कहींगुलशन-ए-हस्ती से हो जाओगे वर्ना गुम कहीं
शाह अमीन अहमद फ़िरदौसी
ना'त-ओ-मनक़बत
वस्ल इक हक़ीक़त थी हिज्र इक फ़साना थाहम थे जब मदीना में वो भी क्या ज़माना था
शाह अब्दुल क़दीर बदायूँनी
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दिलम अज़ फ़र्त-ए-शौक़-ए-वस्ल-ए-आँ जानानः मी-रक़्सदकि परवानः ब-पेश-ए-शम्अ’ बे-ताबानः मी-रक़्सद