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ग़ज़ल
दलील-ए-सुब्ह रौशन है सियह शाम-ए-अलम साक़ीख़ुदा का बा'द हर मुश्किल के होता है करम साक़ी
वासीफ़ आलम मुआज्ज़मी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग
अमीर ख़ुसरौ
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ग़ज़ल
देख कर ज़ुल्फ़-ए-सियह मफ़्तून-ओ-शैदा हो गयाऐ दिल-ए-दीवाना क्या तुझ को ये सौदा हो गया
शाह तुराब अली क़लंदर
दोहा
रहिमन थोरे दिनन को कौन करे मुँह सियाह
रहिमन थोरे दिनन को कौन करे मुँह सियाहनहीं छलन को परतिया नहीं करन को ब्याह
रहीम
शे'र
वो उ’रूज-ए-माह वो चाँदनी वो ख़मोश रात वो बे-ख़ुदीवो तसव्वुरात की सरख़ुशी तिरे साथ राज़-ओ-नियाज़ में
सीमाब अकबराबादी
बैत
सुर्मः जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह फ़ाम हो गया
सुर्मः जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह फ़ाम हो गयाफ़ित्नः-सवार-ए-अबलक़-ए-अय्याम हो गया
निसार अकबराबादी
कलाम
रात उभरी तिरी ज़ुल्फ़ों की दराज़ी क्या क्याख़्वाजा-ए-हुस्न ने की बंदा-नवाज़ी क्या क्या
सूफ़ी तबस्सुम
कलाम
फ़ुर्क़त की हज़ारों रातों से इक रात सुहानी माँगी थीजो फूल के बोझ से दब जाए इक ऐसी जवानी माँगी थी