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साखी
बिरह का अंग - बासर सुख नहिं रैन सुख ना सुख सुपने माहिँ
बासर सुख नहिं रैन सुख ना सुख सुपने माहिँसत-गुरु से जो बीछुरे तिन को धूप न छाँहि
कबीर
दोहा
अपने घर का दुख भला पर घर का सुख छार
अपने घर का दुख भला पर घर का सुख छारऐसे जानै कुल बधऊ सो सतवंती नार
चरनदास जी
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पद
प्रकीर्ण के पद - मोरे तो मन राम-चरण सुख-दाई
मोरे तो मन राम-चरण सुख-दाईजिन चरणन सों निकसी सुरसरि शंकर जटा समाई
मीराबाई
दोहा
रहिमन यो सुख होत है बढ़त देखि निज गोत
रहिमन यो सुख होत है बढ़त देखि निज गोतज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत
रहीम
दोहा
विनय मलिका - दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवान
दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवानचरन कमल चित चहत हौं मोहिं तुम्हारी आन
दया बाई
दोहा
नई रीति या पीत की पहलें सब सुख देह
नई रीति या पीत की पहलें सब सुख देहपाछैं दुख की जील में डार करै तन खेह
बरकतुल्लाह पेमी
पद
सुख सागर में आय के मत जा रे प्यासा
सुख सागर में आय के मत जा रे प्यासाअजहुँ समझ नर बाबरे जम करत निरासा
कबीर
छंद
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै सुख साज सनेह समोइ रही
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै सुख साज सनेह समोइ रहीसुचि चीकनी चारु चुभी चित मैं भरि भौन भरी खुशबोइ रही
गंग
साखी
सेवक और दास का अंग अनराते सुख सोवना राते नींद न आय
अनराते सुख सोवना, राते नींद न आयज्यों जल टूटे माछरी तलफत रैन बिहाय
कबीर
कवित्त
अनन्य भाव - कहा 'रसखानि' सुखसम्पति सुमार कहा
कहा 'रसखानि' सुखसम्पति सुमार कहाकहा तन जोगी ह्वै लगाए अंग छार को
रसखान
साखी
चितावनी का अंग - 'कबीर' रसरी पाँव में कहा सोवै सुख चैन
'कबीर' रसरी पाँव में कहा सोवै सुख चैनस्वास नगाड़ा कूँच का बाजत है दिन रैन
कबीर
गीत
सुख जो बरसात का क़िस्मत में न था मोरे बदाभरी वर्षा में वह परदेसी भयो मोसे विदा
शाह तुराब अली क़लंदर
दोहा
मुख सुख को ससि निरमलो होत पाप तम दूर
मुख सुख को ससि निरमलो होत पाप तम दूरध्यान धरें अति पाइए 'पेमी' मन की मूर