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कलाम
हम नहीफ़ों से गुरेज़ आप को दरकार नहींपहलू-ए-गुल में हुआ करते हैं क्या ख़ार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
फ़ारसी कलाम
ऐ दोस्त ब-बीं दर हमः सू रू-ए-ख़ुदा-रा बा-ऐ'न निगाहेमी दाँ ब-यक़ीं ईं हमगी मा-ओ-शुमा रा मिरआत-ए-इलाहे
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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रूबाई
मैं तो सनम-परस्त हूँ मुझ को हरम से क्या ग़रज़तेरा करम नसीब हो बाग़-ए-इरम से क्या ग़रज़
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
चराग़-ए-जहाँ में ऐ गुल जो कुछ कि है सो तू हैशम्साद-ओ-सर्व-ए-सुंबुल जो कुछ कि है सो तू है
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
अपनी धुन में हूँ ख़याल-ए-मा-सिवा से क्या ग़रज़आश्ना से क्या ग़रज़ ना-आश्ना से क्या ग़रज़