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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
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अज़ीज़ वारसी देहलवी
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अ’ज़्म-ओ--इस्तिक़लाल है शर्त-ए-मुक़द्दम इशक मेंकोई जादः क्यूँ न हो इंसान उस पर जम रहे
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
यहाँ मोहम्मद वहाँ मोहम्मद इधर मोहम्मद उधर मोहम्मदजहाँ भी देखा निगाह-ए-दिल ने वहीं पे आए नज़र मोहम्मद
नसीर सिराजी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मोहम्मद बोसा ज़द आवाज़ के ख़ास्तनबूदत दरमियाँ जुज़ एहतिमाले
ख़्वाजा बंदानवाज गेसूदराज़
ना'त-ओ-मनक़बत
मोहम्मद मज़हर-ए-कामिल है हक़ की शान-ए-'इज़्ज़त कानज़र आता है इस कसरत में कुछ अंदाज़ वहदत का
अहमद रज़ा ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
शम्सुज़्ज़हा मोहम्मद बदरुद्दुजा मोहम्मदनूर-उल-हुदा मोहम्मद कहफ़ुल-वरा मोहम्मद
ज़हीन शाह ताजी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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आग लगी वो इशक की सर से मैं पाँव तक जलाफ़र्त-ए-ख़ुशी से दिल मिरा कहने लगा जो हो सो हो