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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-दीया की बत्ती(53) एक नार ने अचरज किया। सांप मार पिंजरे में दिया।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-दीया की बत्ती (53) एक नार न अचरज किया। सांप मार पिंजरे मैं दिया।।
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(2) यह अवसर दुर्लभ मिलै, अचरज मनुषा देह। लाभ वही सहजो कहै, हरि सुमिरन करि लेहु।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
ये छब देख अचरज भयो छुरी कुंद हो जाय17۔ उम्मीद हस्त कि बे-गानगी-ए-उ’र्फ़ी रा
ज़माना
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जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
परमात्मा का साक्षात्कारजायसी की जीविका खेती थी। आप अपने हाथ से हल चलाते, खेत निराते थे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कन्नड़ का भक्ति साहित्य- श्री रङ्गनाथ दिवाकर
आदि-मानव ने इस विचित्र एवं विविधता से भरी सृष्टि की ओर आँखें खोल के पहले-पहल जब