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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
गाह चूँ अब्र अश्क-ए-ख़ूनीं मीफ़शांद ।गाह दस्तज़ जान-ए-शीरीं मीफ़शांद ।।
सुमन मिश्रा
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पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
लोग अश्क बहाते हैं तो ग़म में कुछ हैबे-वजह किसी पर नहीं मरता कोई
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
तर जो तेरे आस्ताने की तमन्ना में हुईअश्क मोती बन गए चश्म-ए-तमाशा-ख़्वाह के
सूफ़ीनामा आर्काइव
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लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
ज़े-रंग-ए-बादः ब-शवेद ख़िर्क़:-हा अज़ अश्ककि मौसम-ए-वरअ’-ओ-रोज़गार-ए-परहेज़स्त
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत शाह वजीहुद्दीन अलवी गुजराती
सर देहम दर गिर्य:-ए-चश्म-ए-अश्क-बार-ए-ख़्वेश राबर-कुनम अज़ बख़्त-ए-दिल हर-दम किनार-ए-ख़्वेश रा
मआरिफ़
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
हज़रत हसन जान को बचपन ही से शेर ओ सुख़न का शौक़ रहा है।उनका ये ज़ौक़