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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।।(160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।। (160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
कही सो शीरी होकर आवे।आप खेलू आप खिलाऊ।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
जो तुह काज न आवे आजू, सो मेरे पुनि कवने काजू।। मधुमालती, 172.3-5
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
जिसके न रहने से जीवन की धारा ही खंड़ित जान पड़ती है, उसके दोषो का ध्यान
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत रोहल की बानी- दशरथ राय
मानख जनम फिर हाथ न आवे, चोरासी लाख फेरा।।संतों में अनुकरण की वृत्ति नहीं होती। वे
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
आलोचना- महाकवि बिहारीदास जी की जीवनी-मयाशंकर याज्ञिक
अपने लेख में रत्नाकर जी ने इस विषय पर विचार किया है और छः-सात पृष्ठों में
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
अर्थात् (श्रीसमर्थ रामदास स्वामी कहते हैं कि) यह जो कुछ हमने बतलाया, सब हमारे अनुभव की
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
लाल बिहारी कृत कथा पढ़ै सो होइ प्रबीन।। इस दोहे का एक सामान्य अर्थ तो यह होता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
इससे निश्चय हुआ कि जिनके बुद्धिरूप नेत्र खुले हुए हैं व प्रत्यक्ष देखते हैं कि यममार्ग