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सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
अज़ीज़ मियां मेरठी इकलौते ऐसे अनोखे क़व्वाल थे जो अपनी क़व्वालियाँ खुद लिखते थे ।साबरी ब्रदर्स
सुमन मिश्रा
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी
आपकी इल्मी लियाक़त ख़ूब थी। उक़्दा ए ला यंहल भी बड़ी आसानी से हल कर लेते।
रय्यान अबुलउलाई
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अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पहली क़िस्त
इसके सिवा इस ग्रन्थ के खण्ड और उपखण्डों के विभाजन में भी यत्किंचित् फेर-फार किया है।
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पहली क़िस्त
इसके सिवा इस ग्रन्थ के खण्ड और उपखण्डों के विभाजन में भी यत्किंचित् फेर-फार किया है।
स्वामी सनातन देव
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
(5) शर्त-ए-पंजुम : अगर कोई सादिक़-उल-हाल खड़ा हो जाये तो सबको उसकी की मुवाफ़क़त करनी चाहिए,
अकमल हैदराबादी
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मयार समाअ बतदरीज क़व्वाली के अहद-ए-ईजाद तक
ये है शैख़ शहाबउद्दीन सुह्रवर्दी का इर्शाद उनके ख़ुद के ‘अह्द के समा’अ के बारे में।
अकमल हैदराबादी
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ज़िक्र-ए-खैर : हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली
आमदम बर-सर ए मतलब! हज़रत शाह अब्दुल क़ादिर अबुल उलाई के बिरादर-ज़ादा और हज़रत सय्यद शाह
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मौक़िफ़
‘’ ‘इबादत दो क़िस्म की होती है, एक वो जिसका फ़ाइदा सिर्फ़ ‘इबादत करने वाले को