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सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
।। चौपाई ।।ब्रह्म होगी ब्रह्म हो गल तानैं। याका भेद गुरुसे जानैं।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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अलाउल की पद्मावती - वासुदेव शरण अग्रवाल
काग उड़ावत धन खड़ी सुनेउ संदेस भरक्कि।अद्धीं बरियाँ काग गल अद्धीं गई तरक्कि।।
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अलाउल की पदमावती- वासुदेव शरण अग्रवाल- Ank-1, 1956
अद्धीं बरियाँ काग गल अद्धीं गई तरक्कि।।स्पष्ट है कि मैना सत और चंदायन दोनों अवधी काव्य
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महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
प्रिय से सम्बन्ध रखनेवाले व्यक्तियों या वस्तुओं का प्रिय लगना ऊपर दिखा आए हैं। इस पद
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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सूर के भ्रमर-गीत की दार्शनिक पृष्ठभूमि, डॉक्टर आदर्श सक्सेना
सेवक सूर लिखन कौ आँधौ, पलक कपाट अरे।।पता नहीं मथुरा में स्याही चुक गई या कागज