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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
लाली यह करन चरन अधरन मैं। है न गुलनार मैं गुलाब गुड़हुर हू मैं,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
बादशाह ने फ़रमाया वाह जी वाह ख़ाली झूला कैसा। कढ़ाई चढ़ाओ, झूलते जाओ और खाते जाओ