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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।।(160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।। (160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।