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सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
शगुना सीमर बेगि तजु, घनी बिगूचन पांख।
ऐसा सीमरस सेवे, जाके हृदय न आंख।।1
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
इस प्रति के अंत में ये तीन दोहे हैं------
जद्यपि है सोभा घनी मुक्ताहल मैं देखि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(97) एक रूख में अचरज देखा डाल घनी दिखलाके।
एक है पत्ता वाके ऊपर माथ कुछ कुम्हलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(97) एक रूख में अचरज देखा डाल घनी दिखलाके।
एक है पत्ता वाके ऊपर माथ कुछ कुम्हलावे।।