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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
मृदुल गात जलजात-पात से अति मुरझाने। लगत बात जिमि घात जात मग पट उरझाने।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
जो लायक नहिं ताहि सौ कारज ह्वै व्याघात क्रोध भरो पियकौ कर लै पूरलनकी घात
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
वो जो थी बू-ए-मोहब्बत उड़ गई गुलज़ार सेघात में सय्याद,،माएल आशियाँ-सोज़ी पे बर्क़
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(93) तीनों तेरे हाथ में, मैं फिरूँ तेरे घात में।मैं हर फिर मारूँ तेरी, तू बुझ पहेली मेरी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(93) तीनों तेरे हाथ में, मैं फिरूँ तेरे घात में। मैं हर फिर मारूँ तेरी, तू बुझ पहेली मेरी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
असदबेग को लीजिए, चाहे केशवदास को। दोनों ही बताते है कि वीरसिंह के रणभूमि में पहुँचने
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
जीव शरीर के द्वारा ही अपने वास्तविक कर्तव्य की पूर्ति कर सकता है, इसी उद्दश्य से
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
हिंदी साहित्य का इतिहास तीन मुख्य कालों में विभक्त किया जा सकता है- प्रारंभ काल, मध्य