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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
इससे मालूम पड़ता है कि उस समय हिंदी में फ़ारसी शब्दों का मेल नहीं था या
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
इससे मालूम पड़ता है कि उस समय हिंदी में फ़ारसी शब्दों का मेल नहीं था या