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सूफ़ी लेख
सूर का वात्सल्य-चित्रण, डॉक्टर सोम शेखर सोम
सखी री, सुन्दरता कौ रंग।छिन-छिन माँह परति छबि औरे, कमल नैन के अंग।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
हलधर सहित फिरैं जब आँगन चरन सबद सुनि पाऊँ।छिन छिन छुधित जानि पय कारन हौं हठि निकट बुलाऊँ।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
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संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
चाहत पल छिन छूटत नाहीं,बहुत होत हित कारी।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
जानगूढ गुरु जाप जू की साची सरनाय। छिन मांहि वासाजाय करैगो मसांन ए
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
ब्रजलोचन बिनु लोचन कैसे? प्रति छिन अति दुख बाढ़त सूरदास मीनता कछू इक, जल भरि संग न छाँड़त।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश
बचें सब पीर छिन में जिन्हों का पीर जीलानीकरूँ उस नाम क्व ऊपर सों, तन मन जीव कुर्बानी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
वा खातिर में खरचे दाम। ऐ सखी साजन ना सखी आम।।(145) सोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखों ते छिन होत न न्यारा।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)
वस्तुतः हिन्दी के राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने से पहले अधिकतर पूर्व, उत्तर तथा मध्य
बलराम शुक्ल
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ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
शुरुआती वर्षों में रिकॉर्डिंग पीतल के हॉर्न की सहायता से की जाती थीं और कलाकारों को