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सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
जम जम जीयो आतिश ख़ाँ सदा मस्त हती।।चैत
हिंदुस्तानी पत्रिका
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(4) उनकी चौरासी नहिं छूटै। काल जाल जम जोरा लूटै।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
देखै उरध अगाध निरंतर,हरष सोक नहिं जम कै त्रास।।2।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
तन छूटे तब जम को दुख ना पावई।। याकूं पूजै चंदन पुष्प चढ़ाय के।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
मिटै चित्त कौ भरमु रहै नहिं कछुक अँदेसा।। कह पठान सुलतान कटै जम-दुख की बेरी।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश
मय-ख़ुर कि राज़-ए-पिन्हाँ ख़्वाहद शुद आश्काराजामे कि जम नदीदः ऐ साक़िया ब-मन देह
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
ऐसे पठान जग जु जुरे सज्जि सैन बनि मान कौ। भनि मनीराम जगतेस नै ते पठए जम थान कौं।।8।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
सालहा दिल तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्दआँ चे ख़ुद दाश्त ज़े-बैगान: तमन्ना मी-कर्द
निज़ाम उल मशायख़
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हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
‘मुज़्तर’ का ये तड़पना बा’द-ए-फ़ना तो कम होतुर्बत पे आ के जम जा ऐ नक़्श-ए-पा-ए-वारिस
सुमन मिश्रा
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सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
जाम-ए-जम से है सिवा मिट्टी का पैमाना हमेंजोश-ए-वहशत में नि कल जाते हैं जब हम सू-ए-दश्त
सुमन मिश्रा
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आज रंग है !
नीकी लगे यह आंखन में , कहा रंग अबीर सूं होरी भई है.उर्दू शाइरों ने होली
सुमन मिश्रा
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पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
पीर नसीर मस्त क़लंदर इंसान थे। वह कभी किसी ख़ास फ़िक्र या तंज़ीम का हिस्सा नहीं
रय्यान अबुलउलाई
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Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
जमाली का विदेश भ्रमणसूफियों में भ्रमण का ख़ास महत्त्व माना जाता है. भ्रमण को सूफ़ी अपनी
सुमन मिश्रा
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समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
श्रीरामदास स्वामी ने अपने महंत तो जगह-जगह स्थापित किए ही थे, इसके सिवाय उस समय के