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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
नज़र-ए-जान ज़े-जिस्म ब-गुसस्तःसिद्क़-ए-मीआ’द बाज़ दानिस्तः
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
आफ़्ताब ए रूह ए पाक अज़ अब्र ए जिस्म आमद बुरुन(1334-1338 हिज्री)
रय्यान अबुलउलाई
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
जिस्म वीरान-ओ-जान हम चूँ मोमआँ अ’नाँ रा बदीं तरफ़ बर-ताब
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी
चुनाँ दर इस्म-ए-ऊ कुन जिस्म पिन्हाँकि मी-गर्दद अलिफ़ दर इस्म पिन्हाँ
उमैर हुसामी
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
नातवाँ ज़ो’फ़ अ’नासिर से नहीं है जिस्म-ए-ज़ारचार तिनकों का पुराना आशियाना हो गया
सुमन मिश्र
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अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
वही ज़ाहिर है और ये दोनों मज़हरवही है जिस्म-ओ-जाँ और जान-ए-जानाँ है
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
बा हमः ख़ुद ब-रवेम आ’शिक़-ए-रू-ए-कीस्तमरस्त: ज़े-दाम-ए-जिस्म-ओ-जाँ बस्त:-ए-मू-ए-कीस्तम
मयकश अकबराबादी
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
वस्लः-हक़ तआ’ला से वस्ल के मा’नी उससे मिलना और पैवस्ता होना है।मगर ये मिलना ऐसा नहीं
सूफ़ीनामा आर्काइव
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दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
अपार अथाह अंगऔर उन्हें हक़ीक़त का भी एहसास था कि दूलहा और दुल्हन का समाजी और
शमीम तारिक़
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ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
सूफ़ी संतों ने इस भरोसे को प्रार्थना की रूह कहा है. हज़रत मौलाना रूमी के उपदेशों
सुमन मिश्र
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मंसूर हल्लाज
क़त्ल के बादबयान किया गया है कि जब उन के जिस्म से ख़ून के क़तरे टपकते