आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "जुलाहा"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "जुलाहा"
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कहे कबीर जुलाहा।तू ब्राह्मन मैं कासी का जुलाहा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
2. उन्होंने अपने को ‘कोरी’ अथवा जुलाहा लिखा है। 3. उन्होंने लिखा है ‘चौथे पन में जन का ज्यंद’
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
परै खरी तेहि चूक, मुहमद जेइ जाना नहीं।।शुक्लजी की सम्मति में उक्त जुलाहे का निर्देश कबीर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कर्नाटक के संत बसवेश्वर, श्री मे. राजेश्वरय्या
बसव ने वृत्ति को न जाति-सूचक ठहराया और न किसी की उच्चता या नीचता का धोतक।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
ओरगाना का अर्थ डॉ. अग्रवाल ने अधिपति किया है। ओरग<ओलग्ग<अब-लागू, सेवा करना, चाकरी करना है। (पाइअ