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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
मी ख़िरामीद-ओ-तबस्सुम मी नमूद ।हर कि मी दीदश दर उ गुम मी नमूद ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
एक हल्का सा तबस्सुम मिरी रातों का चराग़वो भी तेरे लब-ए-नाज़ुक को गिराँ लगता है
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम
दिल-ए-बेताब को तस्कीन तबस्सुम से न देचश्म-ए-मजनूँ के लिए महमिल-ए-लैला न बना
सुमन मिश्रा
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शैख़ सलीम चिश्ती
लेकिन जब पाकपत्तन शरीफ़ हाज़िर हुआ तो दीवान साहिब ने फ़रमाया कि तुम्हारा मतलब बिरादरम शैख़