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सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
बुत-ख़ाने तिरी ज़ुल्फ़ से ता’मीर किए हैंअब्रू को तिरी ताक़-ए-हरम हमने किया है
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
बन के फ़र्यादी तिरी सरकार में आया हूँ मैं3
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
देखें तुझे, ये होश कहाँ अहल-ए-नज़र कोतस्वीर तिरी देखकर हैरान बहुत हैं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
जान देते हैं तिरी राह में मरने वालेफ़र्ज़ है मज़हब-ए-’उश्शाक़ में सुन्नत तेरी
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
जान देते नहीं ऐ जान जो उल्फ़त में तिरीज़िंदगी अपनी वो बे-लुत्फ़ बसर करते हैं
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
हर-आन में उस का ये नया ढंग न होताइमकान से बाहर है तिरी कुन्ह का पाना
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
एक उर्दू शायर ने भी ऐसा ही कहा है—-अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ’त को पा सके