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सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
टुकड़ा है तिरे कूचा-ए-दिलकश की जमीं का
जाता है नि कल कर जो तिरे कूचे से कोई
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी
अपनी सूरत में तिरे हुस्न का जल्वा देखा
आईना सामने रख कर ये तमाशा देखा
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
तिरे अफ़्कार से अंदाज़ा-ए-इल्हाम होता है
मोहब्बत का तख़ातुब इ’शक़ का पैग़ाम होता है
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
क्यों याद ना रखूँ तुझे ए दुश्मन-ए-पिनहां
आख़िर मिरे सर पर तिरे एहसान बहुत हैं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
मुझे शौक़ से तग़ाफ़ुल तिरा पाएमाल कर दे
मिरा सर उठा न उठे तिरे संग आस्ताँ से
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
जो तिरे इश्क़ में दुनिया से सफ़र करते हैं
मंज़िल-ए-आ’लम-ए-लाहूत में घर करते हैं
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
नूर-ए-हक़ क्यूँ न समा जाए तिरे दिल में ’अज़ीज़
कैसे महबूब पे आई है तबी’अत तेरी
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
कोई भी भूल सकता है ये एहसाँ उ’म्र-भर तेरा
ये दस्त-ओ-पा तिरे आँखें तेरी हैं ये ज़बां तेरी