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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
सुक्र और मस्ती की हालत में एक बार मोंछें शरई’ हुदूद से बहुत बढ़ गई थीं।किसी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
कबीर दास
जम दरवजवा बांध जाले जावे पकराऐ जोगी तूने अपने दिन को नहीं रंगाया सिर्फ़ कपड़ा रंगा
ज़माना
सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
लुढ़कता हुआ, क़दम-क़दम पर लड़खड़ाता, कमान की तरह झुकी हुई पुश्त और सफ़ैद बुराक़ दाढ़ी वाला