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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
छप्पय सुमुख, सुखद, ससि-धरन, धीर, हेरंब, अबं-सुत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
राजसिंघ महाराज के वीरसिंघ सुत वीर ताके सुत थे ऐमसिंघ सूरजसिंघ रस धीर।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मलूकदास- तजि काशी मगहर को गए हैं, दोनों दीन के पीर।कोइ गाड़े कोइ अग्नि जरावे, एक न धरता धीर।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
मलूकदास- तजि काशी मगहर को गए हैं, दोनों दीन के पीर। कोइ गाड़े कोइ अग्नि जरावे, एक न धरता धीर।।