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सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
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महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
तहाँ कबीरा बंदिगी, कै कोई निजादस कबीर कवल प्रकासिया, ऊग्या निर्मल मूर
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
जनम लगे जीवन मन पीवइ, निर्मल दह दिसि भरिया।।विरह अगिनि मैं जरि गये, मन के मैल विकार।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
जनम लगे जीवन मन पीवइ, निर्मल दह दिसि भरिया।। विरह अगिनि मैं जरि गये, मन के मैल विकार।
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
या रसिया की निर्मल मूरत जोति रूप बनो रीऐसे रंगीले नबी से लागी ‘नियाज़’ की मन की रोरी
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
प्रश्न- इस मनुष्य में पशुओं, सिंहों, प्रेतों और देवताओं के स्वभाव स्पष्ट ही पाये जाते हैं।
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
आश्रय-पक्ष का चित्रणः यशोदादि के भावों का अकनआलम्बन और आश्रय के सम्बंध का निरूपण करते हुए
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
कन्नड़ का भक्ति साहित्य- श्री रङ्गनाथ दिवाकर
संत वाणियों का कार्यकर्नाटक में संतों की वाणियों से जो लोक-शिक्षा का कार्य हुआ वह भी
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर की सामाजिक सोच, डॉक्टर रमेश चन्द्र सिंह
भूल यह थी कि महाराने के पाण्डे न बच्चों को जाति-पाँति के भेद-भाव से ऊपर नहीं
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
समर्थ का निर्वाण हम ऊपर कह चुके हैं कि शिवाजी के स्वर्गवास होने पर श्रीसमर्थ ने अन्न
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
इससे निश्चय हुआ कि जिनके बुद्धिरूप नेत्र खुले हुए हैं व प्रत्यक्ष देखते हैं कि यममार्ग
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की चौथी क़िस्त
याद रखो, यह संसार भी धर्ममार्ग का एक पड़ाव ही है। जो जिज्ञासु भगवान् की ओर
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
नागर सिंधु सभ्यता के बावजूद भारतीय नगरी नहीं ग्रामीण है। पूरा भारतीय साहित्य गाँव उन्मुख हैं।