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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(212) नीला कंठ और पहिरे हरा। सीस मुकुट नाचे वह खड़ा।।देखत घटा अलापै चोर। ऐ सखी साजन ना सखी मोर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(212) नीला कंठ और पहिरे हरा। सीस मुकुट नाचे वह खड़ा।। देखत घटा अलापै चोर। ऐ सखी साजन ना सखी मोर।।