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सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
ता सहर वह भी न छोड़ी तु ने ऐ बाद-ए-सबायादगार-ए-रौनक़-ए-महफ़िल थी परवाने की ख़ाक।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
भला इस जुलूस को देखो और पंखे को देखो। बाँस की खिंचियों का बड़ा सा पंखा