परिणाम "बरमला"
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जो देखता है आपको कहता है बरमलाबेदम शाह वारसी अपने पीर हज़रत वारिस पाक में ईश्वर की पूर्णता का प्रतिबिंम्ब पाकर लिखते हैं –
मंसूर को सैर-ओ-सियाहत का बड़ा शौक़ था।उनकी उ’म्र का बड़ा हिस्सा मुख़्तलिफ़ मुल्कों की सैर-ओ-सियाहत में बसर हुआ।वो तीन मर्तबा मक्का गए और हर मर्तबा फ़रीज़ा-ए-हज अदा किया।तबीअ’त बे-बाक-ओ-ग़यूर पाई थी।जो बात दिल में आती थी उसे ज़बान पर लाने में तअम्मुल नहीं करते थे और अपने मस्लक में बहुत सख़्त थे।रवादारी और मस्लिहत के क़ाइल न थे।जिस बात को सही समझ लेते उसे फ़ाश और बरमला कहना अपना फ़र्ज़ समझते थे।
ख़िलाफ़त-ए-राशिदा के बा’द इस्लाम की रूह ज़वाल-पज़ीर हो गई थी। माल-ओ-मताअ’ की मोहब्बत,हुब्ब-ए-जाह और ख़्वाहिशात-ए-नफ़्सानी का
मुफ़्ती नेपाल मौलाना अनीस आलम क़ादरी फ़िरदौसी ( दरभंगा), हज़रत शाह अहमद रज़ा ख़ाँ के शिक्षक
अल्लाह पाक ने आपको फ़य्याज़ी अ’ता की थी, आपके पास से कोई महरूम न जाता, ख़ानक़ाह
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