परिणाम "बहरा-वर"
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सुल्तानुल-मशाइख़ का विसाल18۔रबीउ’स्सानी 725 हिज्री में हुआ। उसी दिन दोपहर में आपकी तद्फ़ीन अ’मल में आई।हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन मुल्तानी और हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी ने आपके जसद-ए-अतहर को क़ब्र में उतारा और आपके पीर-ओ-मुर्शिद के तबर्रुकात आपके शामिल किए गए।सदियाँ गुज़र गईं लेकिन आज भी आपके फ़ैज़ान से कितने क़ुलूब बहरा-वर हो रहे हैं और कितने इन्सानों को दिल-ओ-निगाह की पाकीज़गी हासिल है।आपका फ़ैज़ जारी है और जारी रहे।
आपकी दरगाह पर हमा-वक़्त हाजत-मंदों, मुराद-मंदों का एक जम्म-ए-ग़फ़ीर रहता है लेकिन सालाना ’उर्स से क़ब्ल माह-ए-रजब से हिंदुस्तान के गोशे-गोशे से ज़ाइरीन-ओ-हाजत-मंदों की आमद शुरु’ हो जाती है उनमें जिन्न-ओ-बलिय्यात में मुब्तला और दिमाग़ी तवाज़ुन खोए मरीज़ों की कसरत रहती है।सालाना ’उर्स-ए-मुबारक हज़रत मख़्दूम शाह दरवेश अपने रिवायती-अंदाज़ में निहायत ही तुज़्क-ओ-एहतिशाम और ’अक़ीदत-ओ-एहतिराम के साथ मुंअ’क़िद होता है जिसमें गोशे-गोशे से लाखों ज़ाइरीन आस्ताना-ए-’आलिया अशरफ़िया पर तशरीफ़ लाकर फ़ैज़ान-ए-दरवेशी से बहरा-वर होते हैं।
दानापुर की सर-ज़मीन जो औलिया ए किराम का मस्कन और इल्म की रौशनी और मीनार है
सख़ी सरवर की वज्ह-ए-तस्मियाः-लेकिन यहाँ वो नशे नहीं थे जिन्हें तुर्शी उतार देती।जो दिल रूहानी ने’मतों
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