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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
बैरी जो कोउ जान लूं ताको ऐ’ब बताऊँनाम धरन की लाज से बैर से बचता जाऊँ
ज़माना
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
मै बालक बहियन को छोटो, छीको किस विधि पायो। ग्वाल-बाल सब बैर परे है, बरबस मुख लपटायो।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
यह सुनि बोल्यौ जादौ गौर, पहिलौ सौ अब नाहीं ठौर। फेरि अकब्बर के फरमान, कछवाहे सौ बैर निधान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
बैर है बाद-ए-बहारी को मेरे गुलज़ार सेआज-कल अस्ग़र जो थे अकबर हैं और मौला ग़ुलाम
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
अप्रांसगिक होते हुए भी एक बात के उल्लेख का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता। इत
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
अरण्यकांड में क्या है? विमल वैराग्य। यों नहीं कि रामजी बैरागी हो गए या बैरागियों में
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
मिर्ज़ा जहाँगीर बला के पीने वाले और ग़ज़ब के मुँह-फट थे, इस मुख़ालिफ़त से दिलों में