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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
वाही के रंग से सुन बे शोख रंगखूब ही मल मल के धोया री
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
वाही के रंग से सुन बे शोख रंग खूब ही मल मल के धोया री
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
गम्भीरमल मोती सिंह चन्द्रभानचिमन सिंह नरूका इन्द्र मल पुरोहित शिवनाथ
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
मेरे नैना बिरह की बेलि बई। सींचत नीर नैन के सजनी मल पताल गई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
सर्स साबु सूपड धोबी, गुरु का भी मल डारे धोय। कहै कबीर हरि तब पैये, जो एका एकी होय।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
मल रहे हैं हज़रत-ए-ईसा कफ़-ए-अफ़्सोस आजजाँ ब-लब कोई मगर उस लब के बीमारों में है
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
अतः जो पुरुष यममार्ग के कष्टों से मुक्त होना चाहे उसे किसी भी स्थूल पदार्थ में
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
यदि शरीर की सुन्दरता पर विचार करें तो यह अत्यन्त मलिन जान पड़ता है। इसमें है