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सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
रोज़-ए-महशर दार मा आल-ए-रसूलअज़ तुफ़ैल-ए-मुक़्बिलाँ गर्दद क़ुबूल
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अहमद हुसैन चिश्ती शैख़पूरवी
नहीं जुज़ आपके कोई हमारा रोज़ ए महशर मेंगुनाहें अब ख़ुदा से बख़्श्वा दो या रसूलल्लाह
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
तू है महबूब-ए-इलाही कर दुआ’ मेरे लिएये मुसीबत है मिसाल-ए-फ़ित्ना-ए-महशर मुझे
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
तो हो जाएगी दुनिया कोई दिन में ‘अर्सा-ए-महशरजो बादल ख़ूब सा गरजे-ओ-पानी ज़ोर से बरसे
सुमन मिश्र
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हज़रत अमीर ख़ुसरौ
आपका आइंदा ख़िताबः आपके दिल में एक दिन यह ख़याल गुज़रा कि आपका तख़ल्लुस दुनियादारों का