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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
इनके पास जो कुछ था सब इन्होंने लुटा दिया और वे स्वयं उनके मज़ार पर जा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
इनके पास जो कुछ था सब इन्होंने लुटा दिया और वे स्वयं उनके मज़ार पर जा
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हकीम शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी
ये जाम कभी न कभी तो पीना ही था मगर इस तरह शाह साहिब को एक