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सूफ़ी लेख
तजल्लियात-ए-सज्जादिया
है ख़िताब उस रिंद का मस्त-ए-अलस्तजो शराब-ए-इ’श्क़ का सर-शार है
अहमद रज़ा अशरफ़ी
सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
तिरे मैख़ाना-ए-इ’र्फ़ाँ का इक-इक रिंद ऐ मैकशसुरूर-ओ-कैफ़-ओ-मस्ती का छलकता जाम होता है
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
इश्क़ में उस शो’ला-रू के आ गया आँखों में दमरिंद के शम्अ-ए-सहर का झिलमिलाना हो गया
सुमन मिश्रा
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आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
इन सब क़ैदों से मक़सूद सिर्फ़ एक है और वो ये कि जमई’यत-ए-ख़ातिर और मज़ाक़-ए-सोह्बत को
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
जिस दिन इंगलैंड के रसज्ञ कवि रोजेटी ने रुबाइयात् आव् उमर खैयाम उसके विक्रेता से- दूकान
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
मसनवी मिर्रत-उल-मआ’नीयह मसनवी बह्र-ए-रमल में लिखी गयी है. इसमें सात सौ पद है और इस मसनवी
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ अ’लाउ’द्दीन क़ुरैशी-ग्वालियर में नवीं सदी हिज्री के शैख़-ए-तरीक़त और सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बानी - सरदार रज़ा मुहम्मद
हर दो कुतुब ‘ग़मगीन रहि• अकादमी’ में मौजूद हैं। जिल्द 564 और 592। लेकिन ये कैसी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
साहित्य-संसार में इस से अधिक विनय और सत्यशीलता का उदाहरण कम मिलेगा! आज संसार जिसे उस्ताद-ए-कामिल