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सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
मेरी उ’म्रें सिमट आई हैं उनके एक लम्हे मेंबड़ी मुद्दत में होती है ये उ’म्र-ए-जावेदाँ पैदा
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-खैर : हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली
फ़ैज़े गिरफ़्त अज़ दर ओ बाम ओ अबुल उलाउनके कलाम में दिली एहसासात ओ जज़्बात और
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
विदेशी सामराज्य ने न सिर्फ़ हमारी हुकूमत और ताक़त को ग़ारत किया है बल्कि हमारे तमद्दुन,
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
"है शहर-ए-बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम"
तारीख़ की रौशनी में इस हक़ीक़त से कौन इंकार कर सकता है कि जिन मक़ासिद के