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सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
मकाँ है एक त’अय्युन ला-मकाँ भी इक त’अय्युन हैवही मौजूद है बे-शक मकान-ओ-ला-मकाँ कैसा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
इ’श्क़ कू बे-बाल-ओ-पर तैराँ कुनदइ’श्क़ कू दर ला-मकाँ जौलाँ कुनद
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
मुनज़्ज़ह वो तो हे कौन-ओ-मकाँ सेमकाँ उस को कहाँ जो ला-मकाँ हो
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
बे-ख़ुदी मस्ती है यारो और मस्ती कुछ नहींला-मकाँ की मंजिलत पाता है कब कौन-ओ-मकाँ
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
अगर दानी कि हर शय हस्त ला-शयब-दाँ कि हर मकाँ हम ला-मकाँ अस्त