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यही नहीं, अब कृष्ण गाँव में बसेंगे ही नहीं- शहर का व्यक्ति गाँव नहीं बसना चाहता। कृष्ण शहरी की नयी पहचान पा गये हैं। अब देहाती रूप में अपने को नहीं पहचनवाना चाहते- अब हरि क्यौं बसे गोकुल गवई।
शैख़ुल-इस्लाम निज़ामुद्दीन (रहि.)ने बैअ’त-ए-आ’म का दरवाज़ा खोल रखा था। गुनहगार लोग उनके सामने अपने गुनाहों का
13 रमज़ानुल-मुबारक सन 664 हिज्री मुताबिक़ 1265 ई’स्वी को हज़रत शैख़ फ़रीद ने शैख़ निज़ामुद्दीन औलिया
सेउम वो शख़्स कि उसकी हवस-ओ-शहवत भी शिकस्ता हो चुकी हो और अल्लाह तआला की मुहब्बत
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