परिणाम "हँसना"
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इतना ज़रूर है कि ख़्वाह-म-ख़्वाह की उछल कूद फ़िल-वाक़े’ हँसने के लाइक़ है और फ़ित्रतन हँसी आती है जैसा कि आज-कल रिवाज है। अगरचे हँसना नहीं चाहिए इसलिए कि:हर बे-शः गुमाँ म-बर कि ख़ालीस्त
सियर-उल-औलिया के नौवे अध्याय के पहला पारा आदाब-ए-समाअ को मन्सूब है जिसमे महफ़िल-ए-समाअ के आदाब बताए गए हैं । इसमें समाअ के दौरान हँसना, खाँसना और जम्हाई लेने की मनाही की गयी है । सुनने वाले का ध्यान क़व्वाल की तरफ़ न होकर ख़ुदा की तरफ़ हो और नज़रें झुकी हुई हों ।हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने समाअ की तीन शर्तें भी बताई हैं –
“सूर्य उसके मुख के सामने से आड़ में हो गया। सच है, सूर्य के सम्मुख छाया आड़ में हो जाया करती ही है।” मानो प्रियतम का मुख असली सूर्य ठहरा और यह मालूमी सूर्य उसके आगे छाया-मात्र है। (5) ईरानी शायरी में बुलबुल और गुल (गुलाब के फूल) का वही सम्बन्ध है, जो यहाँ भ्रमर और कमल का है। वहाँ के शायर फूल के खिलने को प्रायः उसका हँसना कहते हैं। हाफ़िज कहते हैं-------
“सूर्य उसके मुख के सामने से आड़ में हो गया। सच है, सूर्य के सम्मुख छाया आड़ में हो जाया करती ही है।” मानो प्रियतम का मुख असली सूर्य ठहरा और यह मालूमी सूर्य उसके आगे छाया-मात्र है।(5) ईरानी शायरी में बुलबुल और गुल (गुलाब के फूल) का वही सम्बन्ध है, जो यहाँ भ्रमर और कमल का है। वहाँ के शायर फूल के खिलने को प्रायः उसका हँसना कहते हैं। हाफ़िज कहते हैं——-
क़व्वाली का सबसे रोचक पक्ष ये है कि हिंदुस्तान में गंगा-जमुनी तहज़ीब की जब नीव डाली
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