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समा’अ के लफ़्ज़ी-ओ-मजाज़ी मानी : समा’अ अरबी ज़बान का एक ‘आम लफ़्ज़ है जिसके लफ़्ज़ी मानी हैं सुनना, इसी मुनासबत से लफ़्ज़-ए-समा’अ की तश्कील हुई जिसके मजाज़ी मानी राग का सुनना लिए जाते हैं।समाअ’ के इस्तिलाही मा’नी: क़ुर्आनी इस्तिलाहात में समा’अ से मुराद आयात-ए-क़ुर्आन का सुनना है और सुफ़िया की इस्तिलाह में समा’अ एक ऐसी मख़्सूस तर्ज़-ए-‘इबादत है जिसमें राग का सुनना शामिल है।
मुशाइ’रों में शाइ’र की कामयाबी का दार-ओ-मदार अच्छे कलाम के साथ अच्छे तरन्नुम या तहत-अल-लफ़्ज़ के
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