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सूफ़ी लेख
क़व्वाली में बाज़ाबता राग हैं
समा’अ में महज़ ख़ुश-अल्हानी की इजाज़त है और क़व्वाली राग रागनियों पर मुश्तमिल है, मसलन क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली एक ताल का नाम भी
समा’अ में अगर नग़्मा की बा-ज़ाबतगी हो तो वो समा’अ से ख़ारिज हो जाता है। नग़्मा
अकमल हैदराबादी
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समाअ और क़व्वाली के मौजदीन अलग अलग हैं
समा’अ के बारे में हज़रत इमाम मोहम्मद शाफ़ई का इर्शाद है किमैं बग़दाद में ऐसी चीज़
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में ख़वातीन से मुक़ाबले
बीसवीं सदी छठी दहाई में जब पहली ख़ातून क़व्वाल शकीला बानो भोपाली ने क़व्वाली के मैदान
अकमल हैदराबादी
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ख़वातीन की क़व्वाली से दिलचस्पी और क़व्वाली में आशिक़ाना मज़ामीन की इबतिदा
हज़रत ग़ौस-ए-पाक की नियाज़ के साथ क़व्वाली की घरेलू महफ़िलों ने मुस्लिम ख़्वातीन में बे-हद मक़्बूलियत
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली में आदाब-ए-समाअ से इन्हिराफ़ का सबब
अमीर ख़ुसरौ ने अपनी ईजाद कर्दा क़व्वाली हैं जो आदाब-ए-समा’अ को ख़ास अहमियत न दी तो